________________ धम्मि लेः श्रीचरकारणं // 30 // नपात्तसाधनेपथ्यः / प्रस्थितः स ततो पुतं / ययौ मन् वमन किं. साध चि-दनीदितवरं पुरं // 31 // तस्मादहिः कचिद्गृत-गृहेऽसौ निःपरिग्रहः ॥अन्यो त श्वो. / भृत-कुवेलत्वादवस्थितः // 32 // जलयुक्तेन चक्तेन / मुष्टिमानेन सर्वदा // स्वस्य सोऽकल: 504 | यद् वृत्तिं / निरपेद वासुषु // 33 // विना स्नानं समुद्भूत-प्रऋतखेदपिडला // अनुचक्रे तनु| स्तस्य / सेवालितशिलातलं // 34 // सर्वार्थसाधकतया / प्रत्याख्यातमिवेह सः॥ मनागप्यमुचः म धम्मिले पण अमुक वखतसुधि जोगोमाटे साधुनुं व्रत अंगीकार कर्यु. // 30 // पछी ते साधुनो वेष लेश्ने त्यांथी तुरत चालवा लाग्यो, तथा नमतो जमतो कोश्क अजाण्या नगरपासे ग. यो, // 31 // तथा रात्री थवाथी ते नगरनी बहार कोश्क नृतना मंदिरमां बीजा तनीपेठे ते परिग्रहविनानो धम्मिल रह्यो. // 32 // वळी जाणे प्राणोनी अपेदाविनानो होय नहि तेम ते हमेशां जलसहित मुठीजर अनाजथी पोतानुं गुजरान चलावतो हतो. // 33 // स्नानविना अति. शय पसीनाथी चीकासवावं तेनुं शरीर सेवालथी नरेली शीलासरखं देखावा लाग्यु. // 34 // | सर्व प्रयोजन साधनारं जाणीने जाणे तेणे प्रत्याख्यान कर्यु होय नहि तेम तेणे जरुरी प्रयोजः P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust