________________ धम्मि-| // 25 // चूतोऽपि ताहगंनो-सामग्री बनते न चेत् / / नः फलेत सविलंबं वा / फलेष्मस्तयैव | च // 16 // अथाचाम्लतपो वत्स / वत्सरार्धे विधास्यसि // सत्वात्त्वं साधुनेपथ्य-स्तदिष्टां लप्स्य| से श्रियं // 27 // वह्नितापः श्रिये हेनो / ग्रीष्मोष्मा घनवृष्टये // दारो वस्त्रस्य शुध्यर्थ / पाटवा यौषधं कटु // 27 // टंको बिंबस्य पूजार्थ / पृथ्व्याः शस्याय दारणं // कारणं दारुणमपि / तपः कष्टं तथा श्रियः // 15 // जोगार्थ धम्मिलः साधो-नैजेऽथ व्रतमित्वरं / / पृथुकार्थमिव क्षेत्रं / शा. वळी आम्रवृद पण जो तेवां जल अने पृथ्वीनी सामग्री न पामे तो ते फले नहि, अथवा घणे काळे फले, माटे धर्मना संबंधमां पण तेमज जाणवुः // 26 // माटे हे वत्स! साधुनो वेष ले. ने जो तुं धरधां वर्षसुधी हिम्मत राखीने आंबेलनो तप करीश तो मनोवांजित लक्ष्मी पामीश. // 27 // अमिनो ताप वर्णनी शोना वधारे , उनाळानी गरमी वरसादने लावे बे, खारो क. पडांनो मेल दूर करे , तथा कम्वु औषध रोग माडे . // 20 // टांका मूर्तिनी पूजा करा. वे, तथा जमीनने खेमवाथी धान्य नीपजे , तेम आकरूं तपकष्ट पण लक्ष्मी पापनारं थाय | ने.॥ 27 // हवे लक्ष्मीनो समुह करनारा मांगरना क्षेत्रने जेम पोखमाटे सेववामां यावे . ते. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust