________________ धम्मि| दीणा नाद्यापि नोगेला / मनोऽद्यापि धनीयति // तत्त्वामान्यर्थये प्रीति-निचितं रचितांजलिः॥ साई // 21 // तथा कुरु यथात्रैव / यथा स्यां भोगभागहं // न मंत्रसाधकस्येव / मम दूरफले स्पृहा // ...| // // तत्कालं न फलं दत्ते / यः स्वामीव निषेवितः // कथं कालविलंबेन / धर्मः स च फलि. ष्यति // 23 // एवं धम्मिलमालोक्य / सांदृष्टिकफलार्थिनं // कृपारसलसच्चित्तो-गलदत्तोऽब्रवीदि. ति // 24 // सौम्य सजावसत्तायां / धर्मः फलति सत्वरं // ईप्सितोदकमेदिन्यो-योगेनामतरुर्यथा |री नोगोनी वा दीण थइ नथी, तेम माझं मन हजु धन मेलववानी बावाद्यं बे, अने तेथी | हुं हाथ जोडीने प्रीतिपूर्वक आपनी प्रार्थना करुं बु. // 21 // माटे श्राप एम करो के जेथी है या नवमांज लोगोवाळो थलं, अने मंत्र साधनारनीपेठे मारी श्छा दूर फलवाळी न थान.॥ // 2 // जे धर्म सेवेला शेग्नोपेठे तुरत फल थापतो नथी, ते धर्म घणे काळे शोरीते फल आपशे? // 13 // एवी रीते धम्मिलने तुस्त फल मेळववानो अर्थी जोश्ने कृपारसथी नल्बसा. यमान हृदयवान अगलदत्तमुनि बोल्या के, // 24 // हे सौम्य! जेम योग्य जल तथा पृथ्वीना . संयोगथी थाम्रवृक्ष तुरत फले ने, तेम उत्तम नाव राखवाथी धर्म पण तुरत फले . // 25 // P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust