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________________ धम्मि- प्रेमसर्वस्व-रससंपूर्णमानसौ // मूत्यैव जिन्नौ चित्तैक्य-जाजी जन्म व्यतीयतुः // 16 // ____सतीरत्नं यथा साधो / सा धनश्रीरुदाहृता // तथा भवंति चेदन्या / अपि तत्को निषेधकः॥१७॥ सदसत्त्वं हि कस्यापि / वस्तुनो नास्ति वास्तवं // सदसत्त्वाधिरोपस्तु / रागदेषकृतः पुनः // 10 // 501 विरक्तो मन्यसे सर्वा / योषा दोषाकरा इति // संसारसारतास्ता / मन्येऽहं रागवान पुनः // 1 // निग्रहीतुमहं दुःखं / दमोऽस्मीति प्रजल्पता // यत्त्वयास्ति प्रतिझातं / तत्स्मारय मुनीश्वर // 50 // मननी ऐक्यतावाला एवा तेन बन्ने पोतानो जन्म व्यतीत करखा लाग्या. // 16 // एवी रीते हे मुनि! जेम सती मां रत्नसरखी धनश्रीनुं नदाहरण प्राप्यु तेम जो कोईवीजी स्त्री पण होय तो तेनो कोण निषेध करी शके ? // 17 // मुख्यत्वे करीने कोइ पण वस्तुनें सत् असत्पणुं नथी, सत् असत्पणानो जे यारोप मुकाय रे ते तो रागद्वेषथीं थायं . // 10 // वळी हे मुनि! आप तो विरक्त होवाथी सर्व स्त्रीनने दोषोनी खाणसमान गणो गे, परंतु हं तो रागी होवाथी ते स्त्रीनने संसारमा सारत मानुं बु. // 15 // वळी हे मुनीश्वर! हुं दुःख दूर क. खाने समर्थ बुं, एम कहीने आपे जे प्रतिज्ञा करेली , ते आप याद करो? // 20 // जमा | Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
SR No.036432
Book TitleDhamil Charitra Bhashantar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1914
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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