________________ धम्मि- प्तिमुदा तस्य / विरहव्यथयाप्यहं // शश्वत्तेजस्तमिसान्यां / संध्येवास्मि विझबिता // 11 // विना / | तेन विनीतेन / कलाकुमुदिनींदुना / / वैधुर्यध्वांतविध्वस्ता-जलोका रात्रिरिखानवं // 12 // हसि स्वाथ समुद्रोऽव-कः शोकस्तत्कृते प्रिये // यो निःशूक श्वारदं / चिक्षेप दमातले तदा // 13 // 500 | ततस्त्रपानरेणेव / सा भृशं नमितानना // स्ववृत्तशंसनात्तेन / समतोषि विशेषतः // 14 // धन श्रियं समादाय / धनश्रियमिवांगिनीं // समुद्रोऽपि ततस्तुष्ट-हृदियाय पितुर्गुहं // 15 // तौ. परविमंबना पामी बु. // 11 // कलारूपी कुमुदिनीने चंद्रसरखा एवा ते विनीतविना अधीरारूपी अंधकारथी नाश पामेला प्रकाशवाळी रात्रिसरखी हुँ थ गश् बु. // 12 // त्यारे समुदत्त हसी. ने बोल्यो के हे प्रिये! जेणे निर्दयनीपेठे ते वखते कोटवालने जमीनमां दाटी दीधो तेनेमाटे तारे शामाटे शोक करवो जोश्ये? // 13 // त्यारे जाणे लज्जाना नारथी होय नहि तेम अत्यं. त नमेला मुखवाळी एवी ते धनश्रीने तेणे पोतानुं वृत्तांत कहीने वधारे खुशी करी. // 14 // पजी देहधारी महान लक्ष्मीसरखी धनश्रीने लेश्ने थानंदित मनवाळो समुद्रदत्त पण पोताना वि. | ताने घेर गयो. // 15 // परी अत्यंत प्रीतिरसथी नरेला मनवाळा फक्त याकारथीज निन्न तथा / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust