________________ धम्मि- पिसान्येद्यु-र्दधाना धर्मनायितं // निदानं तेन दुःखस्य / पृष्टा स्पष्टमभाषत / / 9 // . नाय प्राग. तिथीते / दुस्सहे विरहे तव // ममामिलत्पुमानेको / विवेको मूर्तिमानिव // 7 // स शीलशा. लिकेदारो / विनीत इति विश्रुतः // मनो विनोदयामास / चिरं त्वहिरहातुरं // 5 // कियंतमपि पए कालं स / स्थित्वा सूक्तसुधानिधिः // त्वदानयनदंभेन / कापि न झायते गतः // 10 // तवावा. संघला काळने वरसादनीपेठे तल्लीन थयेला समुद्रदत्ते दर को. // 6 // पजी एक दिवसे कई क कारणथी तेणीनुं मन ज्यारे दुनावा लाग्युं त्यारे समुदत्ते दुःखनु कारण पूवाथी तेणीए प्रगट रीते कडं के, // 7 // हे स्वामी! ज्यारे आपनो अस्सह विरह मने थयो हतो त्यारे मने मूर्तिवंत विवेकसरखो एक पुरुष मब्यो हतो. // // शीलरूपी मांगरना क्यारा सरखा ते विनीत नामना पुरुषे थापना विरहथी थातुर थयेला मारा मनने घणा वखतसुधि खुशी कर्यु हतुं. // 5 // उत्तम वचनरूपी अमृतना निधानसरखो ते माणस केटलोक काळ रहीने बापने शोधी लाववा. ना मिषयी कोण जाणे क्यां गयो , ते जणातुं नथी. // 10 // माटे पापना मेलापना वर्षथी बने तेना विरहनी पीमाथी एकी वखते प्रकाश बने अंधकारथी व्याप्त थयेली संध्यानीपेई Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.