________________ धम्मि-। रिस्कृतः // 2 // क्रमागिरिपुरं प्राप्तो / मित्रैरूचे धनाय सः॥ वसंतो वनमायातो / मृदुध्वानैः पि. कैखि // 3 // कृत्वा विवाहसामग्रीं / प्रपंचचतुरो धनः // न्यमंत्रयत तं नोक्तुं / समित्रं स्वगृहे नि| शि॥ 4 // धनांगजा त्रियामाया-मायातं स्वसुहृद्युतं // वीक्ष्याऽहृष्यच्चकोरीव / मृगांकमुरुमध्यगं 895 // 5 // नोजयामास तं नक्त्या / रंजयामास समिरा // धनः सागरजातत्वा-जीवितादपि वनभं | // 6 // जुक्तोहितो धनेनासौ / बलात्पुत्री व्यवाह्यत // संस्तुतत्वात्तवाचं / व्यावर्तयितुमदमः॥ की कोयलो जेम वनमां आवेला वसंत ऋतुने जणावे , तेम मित्रोए धनश्रेष्टिपते तेने अनु क्रमे गिरिपुरमा आवेलो जणाव्यो. // 3 // सारे प्रपंचमा हुशियार धनश्रेष्टिए विवाहनी सामग्री करीने तेने रात्रिए नोजनमाटे मित्रसहित पोताने घेर बोलाव्यो. // 4 // त्यारे पोताना मित्रसहित रात्रिए आवेला तेने जोश्ने धनश्रेष्टीनी पुत्री ताराजे वच्चे रहेला चंद्रने जोश्ने चकोरीनी. पेठे खुशी थइ. // 5 // पनी धनश्रेष्टीए सागरदत्तनो पुत्र होवायी जीवितथी पण वान एवा ते समुदत्तने नक्तिथी जमाड्यो, तथा उत्तम वचनथी खुशी को. // 6 // जमीने नठ्याबाद ध. | नशेने बलात्कारे तेने पोतानी पुत्री परणावी, परिचय न होवाथी तेनुं वचन ते फेरवी शक्यो | PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust