________________ सार्थ धम्मि। ना // 13 // विवत्सुमत्र सततं / विज्ञाय व्याधिनायकं // अशुश्रवद्दपुस्तस्य / तद्भूयः खयथुः स्वयं // 14 // आविर्वजूव दौर्गध्यं / तस्यांगे तत्प्रसृ वरं // न येन सविधे स्थातुं / कोऽपीष्टे मक्षि कां विना // 15 // चिरं चिकित्स्यमानोऽपि / नासौ नीरोगतां गतः // ठरः पठ्यमानोऽपि / वि. 373 | नेयो वैदुषीमिव // 16 // गृहापवरकं नासौ / जुःसाधव्याधिबाधितः / / जहौ जराजर्जरितो / नो. गीव तरुकोटरं // 17 // अन्यदा मंत्रिणः दोणी-नेतुः सदसि तस्थुषः / जवनो यवनदीपा - ने अानंद करनासे यानंद नामे पुत्र हतो, परंतु ज्यारे ते युवान थयो त्यारे तेना शरीरमां चा. ममीनो रोग दाखल थयो. // 13 // ते रोगना नायकने हमेशां तेना शरीरमां वसवानी बावा. को जाणीने तेना नोकर सोजाए पोते तेनुं शरीर स्थूल करखा मांडयुं. // 14 // पड़ी ते रोगने लीधे तेना शरीरमां एवी दुर्गधी विस्तार पामी के जेथी मदिकाविना को पण तेनी पासे बेशी शकतं नहि. // 15 // घणा काळसुधी तेने माटे औषधो कर्या परंतु नणतो एवो पण बुधिवि नानो शिष्य जेम विद्वताने तेम ते नीरोगी थयो नहि. // 16 // अने तेथी घडपणथी निर्बन |थयेलो सर्प जेम वृदनुं बिल तेम असाध्य व्याधिथी पीमित थयेला ते मंत्रिपुत्रे घरनो नरडो। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust