________________ धम्मि-| षां वपुः शिलासार-सारैखि विधिय॑धात // तत्रामन्यत मल्लांस्तान् / स गोमयमयानिव / / 1700 // मा तृणायापि न मन्यते / ये योधानायुधोत्कटान् // सोऽजैषीतानिभानोजः-खानिः खानीव सुव्रतः // 1 // खां कलां लालयत्येवं / तस्मिन विस्मितचेतसः // मूर्धानं धूनयामासु-र्गुणकीताः सनास दः॥२॥ स्तुतिनिंदाविधी वंध्य-मनसोऽथ मुनेवि // मुखमेष महीपस्य / पश्यतिस्म पुनः पु. नः // 3 // भूपोऽवग्भऽ मे चित्रं / नानया कलया तव // चेष्टते बहवोऽप्येवं / प्रायेणोदरपूर्तये घपणमां जेम हाथीन तेम अन्य सुनटो मदरहित थ गया. // 7 // जेनन शरीर विधाताए पबरना सारवडे बनाव्यु बे, ते मलोने पण ते गणना बनावेला मानतो हतो. // 1700 // जे हाथीन हथियारबंध योधाने पण तृणसमान मानता हता. ते हायीनने पण मुनि जेम ई. | at दिलने तेम बळनी खाणसरखो ते अगलदत्त जोतवा लाग्यो. // 1 // एवी रीते ते ज्यारे पोता | नी कला देखाडवा लाग्यो त्यारे तेना गुणोथी विस्मय पामेला सजासदो मस्तक धुणाववा ला. ग्या.॥२॥ परंतु मुनिनीपेठे स्तुति अने निंदाथी रहित मनवाळा राजानुं मुख ते फर फररीने जोवा लाग्यो. // 3 // त्यारे राजा बोल्यो के हे गद्र! मने तारी या कलाथी पाश्चर्य थतुं नथी, | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhek Trust