________________ सार्थ धम्मि- निश्चिकाय सः // 3 // तुरंगस्य अविबेदा-ततः शल्ये निराकृते / स व्रणं व्रणरोहिण्या-रो. हयामास सत्वरं / / 4 // हये निरामये जाते / जानन पुण्यविशालिनं // पाललाप कलापात्रं / ग्रामेशस्तं ससौहृदं // 79 // रूपांतरितनाकोकः / कलाप्राप्तसरस्वति // वद कौतस्कुतोऽसि त्वं / 515 कियांस्तव परिबदः // 6 // सोऽवक्कुशाग्रनगरा-दहमायासिषं सखे // ग्रामसीनि च रामाया / ममास्ति स्थापितो रथः // 7 // जे नागपर प्रथम ते माटी सुकाइ गर, ते भागमां अंदर कश्क शल्य बे एम तेणे निश्चय कर्यो. // 73 // पड़ी तेणे ते घोमाना शरीरमां ते जगोए वाढकाप करीने तेमांथी शब्य कहाडी नाख्यु, तथा ते जखमने व्रणरोहिणी नामनी औषधीथी तेणे तुरत रुमावी नाख्यो. // 7 // एवी रीते घोडो ज्यारे नीरोगी थयो त्यारे ते कलावान धम्मिलने पुण्यशाली जाणीने राजाए मित्रतापूर्वक बोलाव्यो के, // 5 // हे रूपांतर देव! तया कलाथी प्राप्त करेली ने सरस्वती जेणे एवो तुं क. हे के क्यांधी यावे ? तथा. तारो हेटलो परिवार ने? // 76 / / त्यारे धम्मिल बोल्यो के हे मित्र! हुं कुशाग्रनगरथी आq डं, तथा गामनी सीममां में मारो स्थ राख्यो . // 7 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust