________________ धम्मि| दुर्घटं // 26 // दृष्ट्वान्यदा मुनिद्वंदं / मध्येपुरविचारिणं // गवादगोऽहमव्यूढ-मोहः प्राग्नवममा स्मरं // 27 // तदादि हदि मन्येऽहं / कलासु सकलास्वपि // वल्लीषु कल्पवल्लीव-देकां पुण्यकलां कलां // 27 // वास्तुविद्योर्णनानेषु / सुगृहासु च साग्रहा // हंसे गतं वचः कीरे। नीरे च तर 272 | तिमौ // 27 // हुडे युघ्नता काल-झानं च खरकुर्कुटे // प्रचलाकिनि नृत्यं च / पंचमोगा रिता पिके // 60 // एवं कला किल कापि / कापि दृष्टा पशुष्वपि // न पुनः सफलं पुण्यं / वि. पुत्र थयो बु, केमके पुण्यथी शुं प्राप्त थतुं नथी? // 56 // एक दिवसे नगरनी अंदर विचरतुं मुनिनुं जोमg जोश्ने गवादमां बेठेलो हुँ मोह दूर थवाथी पूर्वनवने याद करवा लाग्यो. // 7 // धने त्यारथी हुँ मारा मनमां एम मार्नु बु के वेलमीनमा जेम कल्पवेली तेम सघली कलानमां एक पुण्यकलाज श्रेष्ट . // 27 // करोळीयामां जेम वास्तुविद्या, सुघरीनमा विशेष प्रकारनी ते विद्या, हंसमां गति, पोपटमां वचन, मत्स्यमां जल तरवानी कळा // 27 // तेतरमां युघकान, खर तथा कुकडामां काळज्ञान, मयूरमां नृत्य तथा कोकिलमां पंचमराग, // 6 // एवी रीते को. | 3 को पशुमां पण कोक कोक कला जोवामां आवे , परंतु पुण्यविना लक्ष्मी, सुख के कीर्ति P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust