________________ धम्मि-| ना श्रीसुखकीर्तयः // 61 // त्रिनिर्विशेषकं // शिरःशून्याः कलाः सर्वा / एकां धर्मकलां विना / / ततो वीर प्रशंसंति / संतस्तामेव केवलं // 6 // एवं राशि वदत्येव / नागरा फुःखसागराः // समं | समाजमाजग्मुः / सारोपायनपाणयः // 63 // विझं विझपयामासु-स्ते नत्वा नरनायकं / / त्वां या__ 373 | चंते प्रभो स्थानं / पौराश्चौरातिवर्जित // 64 // आत्मनीव सचैतन्ये / त्वयि मध्यस्थितेऽप्यहो / / बुप्तमेतत्पुरं चौर-चस्टैः करटैखि // 65 // आरंजन्नीरव श्व / स्तेनास्ते नाथ पत्तने / खानावसि. सफल थतां नथी. // 61 // एक धर्मकलाविना सघळी कलानं मस्तकरहित , माटे हे वीर ! सं. त पुरुषो केवल ते धर्मकलानेज वखाणे . // 6 // जेवामां राजा एम बोले जे तेवामां अत्यंत पुःखी थयेला नगरना लोको एकग थश्ने हाथमां मनोहर नेटणासहित राजसनामां याव्या,। // 63 // तथा ते विहान राजाने नमीने विनंति करवा लाग्या के हे स्वामी! नगरना लोको थापनीपासे चोरना नपऽवविनाना स्थाननी मागणी करे . // 64 // चेतनाशक्तिवाळा यात्मानी. पेठे आप अंदर रह्या बतां पण नास्तिकोसरखा चोरोए था नगर बुंटीने विनष्ट कर्यु . // 65 // | वळी हे स्वामी! आपना था नगरमां जाणे वारंनथी डरता होय नहि तेम ते चोरो अमारी तै. Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.