________________ परHET धम्मि- छान गृह्णति / दारांश्च विनवांश्च नः / / 66 // क्रूरचौरकृतैश्विः / सांप्रतं सदनेषु नः // प्रवेशमा निर्गमौ जातौ / सुकरौ सर्पसंपदां // 67 // अंगसंगतभूषायै / स्तेनै स्तनया अपि // वध्यंते हंत. | कस्तूरी-कृते गंधमृगा व // 67 // तथा तव पुरे चौरा 1 विलसंतिम निर्भरं // यथा दैगंबरी 375 | दीदा। न चिराद्धाविनी नृणां // 6 // // या मंडनं मुमुक्षुणा-मपरिगृहता मता // अनिच्चूनाम | पि स्तेनैः / सा नः संप्रति दौकिता-॥ 70 // सद्मान्यासन्नसद्मानी–ति सोढं देव नागरैः // म'यार स्त्रीजने तथा धनने ले जाय . // 66 // वळी अमारां घरोमां हमणां ते क्रूर चोरोए क. रेलां बिलोथी सोने याववानुं तथा लक्ष्मीने जावानुं सहेबु थर पडेबु बे. // 67 // वळी कस्तू रीमाटे जेम हरिणोने तेम शरीरपर पहेरेलां बाभूषणोमाटे ते चोरो अमारा संतानोने पण मा. | री नाखे . // 6 // आपना था नगरमां ते चोरो एवी तो चालाकी वापरी रह्या ने के जेथी | माणसोने हवे थोडा समयमांज दिगंबरी दीदा प्राप्त थशे. // 6 // जे अपरिग्रहपएं मुमुकु सा. धुनने शोनावनारंबे, ते अपरिग्रहपणुं नहि श्वता एवा पण अमोने हालमां ते चोरोए आपे। हुँ जे. // 70 // हे स्वामी! घरो जे ऋघिरहित थयां ते तो अमोए सहन कर्ये, परंतु मनुष्योनी / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust