________________ धम्मि- रीदयाऽगलदत्तं सोऽवतंसो मायिनां जगौ // ए। // वत्स विबायतेयं ते / व्यक्तं वक्ति दरिद्रत मा // तदाशु वद विश्वस्तः / कस्त्वं कौतस्कुतोऽसि वा // ए५ // जगादागलदत्तोऽथ / पटुः कपटनाट. | के // ब्रूते परमकारुण्यं / प्रनो प्रश्नोऽयमेव ते // ए६ // अहमुजायिनीवासी / बायोबिनपरिब दः॥ सर्वात्मना श्रिया त्यक्तः / कुलपुत्रोऽस्मि दुर्नगः // ए // लमदारिद्यदावत्वा-दव्यवस्थं नु. वि ब्रमन् // न्यनालयमिहायात-स्त्वां कारुण्यैकसागरं / / ए निश्चितं त्वयि निध्याते / दारियं सर्व मिल्कत जाणे नाश पामी होय नहि एवा ते दुःखी अगलदत्तने जोस्ने ते कपटीनो शिरो. मणि बोल्यो के, // ए४ // हे वत्स! था तारो दयामणो चहेरो प्रगटरीते तारं दरिजपा सचवे बे, माटे तुं मारापर नरुतो राखीने जलदी कहे के तुं कोण अने क्यांनो रहेवासी ने? // 5 // सारे कपटनाटकमां चतुर एवो ते अगलदत्त बोब्यो के हे जगवन् ! आपनो या प्रश्नज पापन अति दयालुपणुं सूचवे . / ए६ // हुँ उऊायिनी नगरीनो रहेवासी , मारी बाल्यावस्थामांज मारो सर्व परिवार नाश पाम्यो , तेमज हुं बिलकुल धनविनानो अने उर्जागी कुलीननो पुत्र .. | ई. // 7 // दारिद्यरूपी दावानल मारी पाउल लाग्याथी हुँ कई पण ठरठेकाणाविना था पृथ्वी / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust