________________ धम्मिः। शांतमेव मे // शाम्यत्येव पयोराशिः / कुनजन्मन्युदित्वरे // एए // द्रागयो लिंगिनालिंगि / सौः / म्य सम्यग वदन्नसि // मयि प्रसन्ने सन्नेत्र / नावि तेऽतिघनं धनं // 1700 // एवं तयोर्निगदतोः। | कालजपेन नास्करः // अयं हि तारकश्रीणां / हतॆत्यस्तमनीयत // 1 // गते सूरे जाज्जग्धुं / . 31 | परितः प्रवितस्तरे // असज्जनजनवांत-मलीमसतमं तमः ॥२॥कथाकोणादथाकृष्या-युधानि पर जम्या करुं बु, एवामां यहीं दयाना सागर एवा धापनां मने दर्शन थयां बे. // ए // ख. रेखर श्रापर्नु ध्यान धरवाथीज हवे मारुं दारिद्य तो हुं दूर गयेवु मानुं बु, केमके ज्यारे वमवानल नदय पामे त्यारे समुफ शांतज पडी जाय . // एए // हवे ते परिव्राजके तेने तुरत या. लिंगन देने कां के हे सौम्य ! तुं जे कहे जे ते बरोबर , वली हे उत्तम दृष्टिवाळा ! हुँ ता. रापर जो प्रसन्न थयो तो तने घणु धन प्राप्त थशे. // 1000 / / एवी रीते तेन जेवामां वातो क. रेले, तेवामां था पण तारानी लक्ष्मीने दरनार , एम सूचवीने कालराजाए सूर्यने अस्त प. माज्यो. // 1 // हवे सूर्य ज्यारे चाख्यो गयो त्यारे दुर्जन मनुष्यना अंतःकरणसरखो यति माती. न अंधकार चोफेर विस्तार पाम्यो. // 2 // पड़ी ते परिवाजके पोतानी कंथाना गजवामांथी . Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.