________________ सार्थ धम्मि- // 5 // तत्र प्रियोच्चितैः पुष्पैः / केऽपि कंठावलंबिन्निः // बाणैः कुसुमबाणस्य / विद्या व विरे जिरे // 6 // कैश्चित्सरसि फुलाब्जे / लालाद्भिहसलीलया // नड्डीयान्यत्सरो नेजे / हं सैर्जातन्त्रमैः |खि // 7 // कामिनो मृवृत्तेषु / रंभास्तंनेषु केचन // ददिरे निजकांतोरु-भ्रांत्या तीदपशिखा 435 | नखान् // 7 // ददृशुः केऽपि संगीतं / गेयं केचन शुश्रुवुः / / केचिदोलासु चिक्री-त्रैमुरन्ये | यदृबया // 5 // ललन्नगलदत्तोऽपि / वने विविधकेलिन्निः // पत्न्या सह व्यतीयाय / वासरं वा एवो अगलदत्त पण श्यामदत्तासहित वनमां गयो. // 5 // त्यां स्त्रीनए वीणेलां बने कंठमां प. हेरेला पुष्पोथी केटलाक पुरुषो जाणे कामदेवना बाणोथी वांधाया होय नहि तेम शोनवा लाग्या. // 6 // वळी प्रफुल्लित कमलोवाळां तलावमां ज्यारे केटलाक हंसोनीपेठे क्रीडा करवा ला. ग्या त्यारे जाणे ब्रांतिमां पडेला होय नहि तेम हंसो नडीने बीजा तळावमां गया. // 7 // व. ली केटलाक कामी पुरुषो कोमल अने गोळाकारवाला केळना स्तंजोने पोतानी स्त्रीजना साथळ जापाने तेनमा तीक्ष्ण अणीदार नखोरीयां मारवा लाग्या. // 7 // केटलाक संगीत जोवा ला. ग्या. केटलाक गायन सांजलवा लाग्या, केटलाक हिंचोळा खावा लाग्या, तथा बीजा केटला Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.