________________ धाम्म- दुघटिष्ट नः // 27 // दध्यवांसश्च नो गेहं / गंतुं युक्तमतः परं // कः पाशान्निर्गतः पाशे / पुनः पित्सति सन्मतिः // // निहंतुमहितं भ्रातु-रातुरा मातुराझया // निर्गता मोहमारादीन् / पूर्व | हन्मः स्ववैरिणः // 25 // उपनामंति बाह्यारीन् / जेतुं जगति जन्मिनः // कामाचैर्हतसर्वस्वं / न 461 खं जानंति बालिशाः // 30 // बंधवो बंधनं योषा / सदोषा विषया विषं // जानंतोऽपीत्यनार्या ही / / स्वकार्याय पराङ्मुखाः // 31 // न प्रेमधामवनिता न नितांतपुष्टा / लदम्यो न लदाणलसहपु. | तेथी अमोए विचार्यु के हवे तो आपणे घेर जवू युक्त नथी, केमदे पाशमांथी निकळेलो कयो सद्बुधि माणस पागे पाशमां पडवानी ना करे? // 20 // मातानी आझाथी नाश्ना शत्रुने मारवाने यातुर थ निकळेला एवा यापणे प्रथम मोह तथा काम आदिक यापणा शत्रुनने मारवा जोश्ये. // 25 // था जगतमां प्राणी बाह्य शत्रुनने जीतवाने प्रयत्न करे , परंतु का. मादिक शत्रुन पोतानी जे सर्व मिल्कत बुंटी ले रे तेने तो ते मूल् जाणी शकना नथी. // // 30 // बंधुन बंधनसरखा , स्त्रीन दोषोवानी ने तथा विषयो विषसमान ने, एम जाणतांथकां | पण मूर्ख लोको पात्मकार्यमाटे बेदरकार रहे . // 31 // नरकरूपी अंध कुवामां पमता प्राणी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust