________________ धम्मिः षस्तनूजाः // नो वा निरंतरहृदः सुहृदः कदाचि-दालंबनं निपततां नरकांधकूपे // 35 // एवं सं. / सार्थ सारवैराग्यात् / प्रचेलिमो वयं ततः // विषवल्लीमिव त्यक्त्वा / पल्ली दूरे दिशैकया // 33 // तीर्थ कंचन याचंतः / पापप्रदालनदाम / वयं ददृशिमः कापि / दृढवत्यधिं गुरुं // 34 // श्रुत्वा तद्दे. 461 शनां दीदा-मादिष्महि ततो वयं // चिंतामणिमिवांचोधे-ाग्यहीनैर्दुरासदं // 35 // दृढधर्मो धर्मरुचि-धर्मदासश्च सुव्रतः // दृढव्रतो धर्मप्रिय / श्त्याख्या नो ददौ गुरुः / / 36 // विहरामस्ततो. नने प्रेमाळ स्त्रीज, खूब एकली करेली लक्ष्मी, लदाणयुक्त शरीरवाळा पुत्रो तथा अंतररहित हृदयवाळा मित्रो पण कोइ पण वखते बालंबनरूप थता नथी. // 32 // एवी रीते संसारपरथी वै. राग्य थवाथी अमो विषवल्लीनीपेठे ते पल्ली दूर गेडीने त्यांथी एक दिशातरफ चालवा लाग्या. | // 33 // पापोने धोवामां समर्थ एवा कोश्क तीर्थनी शोध करतांथकां अमोए एक जगोए दढव ती नामना गुरुने जोया. // 34 // तेमनी देशना सांभलीने जाग्यहीनोने दुर्लन एवं चिंताम|णि रत्न जेम समुद्रमाथी तेम अमोए तेमनी पासेथी दीक्षा लीधी. / / 35 // पजी ते गुरुमहाराजे | अमारां अनुक्रमे दृढधर्म, धर्मरुचि, धर्मदास, सुव्रत, दृढव्रत तथा धर्मप्रिय एम नामो आप्यां. // 36 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust