________________ धम्मि- नितो जलदः शीत-काले वर्षासु वर्षति // 22 // झुंजते स्वकृतं कर्म / विश्वे विश्वेऽपि जंतवः // / शोजामात्रफला ह्येते / पितृभ्रातृसुतादयः // 23 // तत्त्वं पितृपदोपांते / स्थिता पुण्यानि संचय // | पुण्यैः कदापि दीयेत / कर्म नोगांतरायकं // 24 // सा पिनोरनुशिष्टयेति / यष्टयेवात्तावलंबना // 471 | खं बाह्यशोकजंबालात् / कथंचिदुददीवरत् // 25 // ननाश सागरन्यासः / पाणितो नः प्रमादतः // श्तीव लज्जानारेण / पादैर्मदप्रपातिन्निः // 26 // व्यावृत्त्याथ वयस्यास्ते / प्रापुरुङायिनी पुरी ता नथी. // 21 // पूर्व नवमां नपार्जन करेबु कर्म या नवमां फल थापे , केमके शियालामां गर्जित थयेलो वरसाद वर्षाऋतुमां वरसे . // // था उनियामां सर्व प्राणी पोतार्नु करेलु कर्म नोगवे , भने था पिता, नाइ, तथा पुत्र यादिको तो शोलामात्र फलवान ने. // // 3 // माटे तुं यहीं मातपिताना चरणोपासे रहीने पुण्योनो संचय कर? केमके कदाच पु. एयोथी तारं नोगांतराय कर्म दीण पण थशे. // 24 // हवे एवी रीतनी पोताना मातपितानी | शिखामणरूपी लाकडीनुं अवलंबन लेश्ने केटलेक प्रयासे तेणीए बहारना शोकरूपी कादवमांधी पोताना आत्मानो नकार कर्यो. // 25 // अरे! आपणी गफलतीथी सागरशेठनी थापण याप. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust