________________ धाम्म। रतिस्मरसुंदरः // पुरः परिसरोद्यानं / वसंतसमये ययौ // 2100 / / विजनेत्र वने क्रीड-नेष घाः / सार्थ तिष्यते सुख // इति गृढधियः सर्वे / वयमन्वगमाम तं // 1 // विसृष्टस्वजनो दृष्ट्वा / दष्टां दुष्टा. हिना प्रियां // सायं सुरौकसो हारि / स्थितस्तारं रुरोद सः // 2 // सोऽहमेव न किं येन / जातं 455] सर्वमिदं मम // ध्यायन्निति स्थी प्रोचे / ततः किं किं भुनीश्वर // 3 // खेटः कोऽपि तदा श्रुत्वा। या, तथा त्यां दुष्ट व्यंतरनीपेठे हमेशां ते वैरीनां बिडो जोवा लाग्या. // एए // हवे एक दिव. से रतिसहित कामदेवसरखो सुंदर ते सुन्नट पोतानी स्त्रीसाथे वसंत ऋतुमां नगरबहार नद्यानमां गयो. // 2100 // था उज्जम वनमां कीडा करता एवा आ सुनटने आपणे सहेलथी मारी श. कीशं, एवी रीते गुप्त विचार करीने अमो सघला तेनी पाबळ गया. // 1 // एवामां दुष्ट सर्प मं. खेली पोतानी प्रियाने जोश्ने ते सुजट स्वजनोने विसर्जन करी पोते संध्याकाळे एक देवमंदि. रना हारमा प्रावीने मोटेथी रमवा लाग्यो. // 2 // अरे! ते तो आ हुँ पोतेज केम न हो ? केमके या तो सघ मनेज लागु पडे बे, एम विचारतोथको ते अगलदत्त बोल्यो के, हे मुनी. श्वर! पनी शुं शुं थयुं ? // 3 // एवामां कोश्क विद्याधरे तेनो विलाप सांजळीने दयाथी प्रेराने PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust