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________________ धम्मि- हंतुं / सा कृपाणमसळायत // तद् दृष्ट्वा स्त्रीविरक्तांत-करणो दध्यवानसौ // 14 // धिक् धिक | सार्थ | धाष्टये पुरंध्रीणा-मीदृशं स्नेहनाजनं // जनं जनकहतार–मिव हा प्रहरंति याः // 15 // सुरू | पे सुन्नगे स्निग्धे / यारज्यन्नात्र नर्तरि / लप्स्यते सा मयि स्थैर्य / कः श्रछत्ते सुधीरिदै // 16 // | येन स्नेहेन वयते / येन देहोऽपि दीयते // रुज श्वाप्तप्रसरा-स्तमपि नंति योषितः // 17 // | दृशं कृशधीरेषा / पुरुषं विषयाशया // ही विहेष्टि नन्नोरत्नं / घूकीव ध्वांतकाम्यया // 10 // रस| माणसो गुप्तपणे दासीननी पण नोकरी बजावे . // 13 // पनी राक्षसीनीपेठे तेने माखाने तेणीए तलवार जगामी, ते जोश्ने स्त्रीश्री विरक्त हृदयवाळा aa मारा गाए विचार्य के, // 14 // थरे! स्त्रीजनी धिगश्ने धिक्कार बे, के जेन यावा स्नेही माणसने पण पोताना बापने मारनार नीपेठे मारी नाखे . // 15 // मनोहर रूपवाळा, सौजाग्यवाळा तथा स्नेहवाल आ जरिमां प णजे रंजित थ नहि, ते मारामां स्थिरता धरशे, एवी श्रका कयो बुध्विान माणस राखे? // | // 16 // पुरुषो के जेन स्नेहथी स्त्रीन- पोषण करे , तथा पोतानुं शरीर पण तेणीने सोंपी दे |, एवी पण स्त्री रोगनीपेठे विस्तार पामीने (बहेकी जश्ने ) तेज पुरुषोने मारे जे. // 17 / / / P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036432
Book TitleDhamil Charitra Bhashantar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1914
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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