________________ धम्मिः। दारे दष्ट तिष्ट तिष्टेति / तदा तेनाशु दकितः // 25 // निन्नेऽमुनाऽनृतोत्कंठे। कंठे कुठेतरा. मा सिना॥ पपात पातकनरा-दिवाधस्तस्कराधमः // 3 // ततः कंगतप्राणः / स प्रोचे रथिकांग जं // मां बुधिधाम बुध्यस्व / चौरं नाम्ना जुजंगमं // 24 // वीरापीड दिषोऽपीडे / तवाहं घातचा. 396 | तुरीं // दुर्ग्रहं भटकोटीनियन्मामेवमखंडयः // 29 / / ईदृग्वीरावतंस त्वं / ध्रुवं सत्कारमर्हसि / / धो , तेज मार्ग मारे तने पण, हमणा देखाडवो . // 21 // एम बोलतोयको जेवामां ते अ. गलदत्तने हाथ श्राव्यो त्यारे तेणें तेने तुरत धमकाव्यो के घरे दुष्ट ! तुं जनो रहे, // 2 // एम कही सजेली तलवारथी पापोमां उत्कंठावा एवं ते चोरनुं गर्बु ज्यारे तेणे कापी नाख्यं सारे ते नीच चोर जाणे पापोना जारथी होय नहि तेम नीचे पड्यो. // 23 // पनी कंठे प्राण श्राव्याथी तेणे अगलदत्तने कडं के हे बुछिवान! मने तारे भुजंगम नामे चोर जाणवो. // 24 // हे वीरशिरोमणि! तारी शत्रुनी पण (मने) मारवानी चालाकीनी हुं प्रशंसा करुं बु, केमके को मो गमे सुनटो पण जेने पकमी शक्या नथी, एवा मने तें यावी रीते मार्यो . // 25 // एवो | तुं वीरशिरोमणि खरेखर सत्कार करवा लायक नगे, अथवा हुं तने धन देवानुं वचन आपीने श्र। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust