________________ धम्मि- शास्त्रशस्त्रयोः // 4 // तमुपेत्य कला त्यासं / कुरु वत्स गुणाकर // पालयस्व पदं चंछ / व मा. | सकलः पुनः // 45 // मातुः शिदामिमां मूर्ध्नि / नीत्वा रत्नवतंसतां / / तद्दत्तशंबलालंधी / कौशां बीमाप स क्रमात // 20 // पितृमित्राय तत्राय-मुत्सुकः समगबन // तेनापि पृचता शुदि / सो 350 लियत कथंचन // 51 // ततः स्वांके निवेश्यैन-माश्विस्य च जगाद सः // वत्स महाकुलस्या पि / किं दशेयम वृत्तव / / 52 // पितृशोकानवी वृतात् / किरन्नश्रूण्यसावपि // पितुर्म युमुदित्वोचे प्रवीण तारा पितानो सहाध्यायी तथा हुशियार दृढपहारी नामे मित्र वसे . // 4 // माटे हे गुणवान पुत्र! तेनी पासे जश्ने तुं कलान्यास कर? अने पजी चंनोपेठे कलावान थश्ने ता. री पदवीनुं पालन कर ? // 4 // एवी रीतनी मातानी शिखामणने रत्नना मुकुटनीपेठे मस्तके चडावीने तेणीए थापेखु भातुं लेश्ने ते अनुक्रमे कोशांबी नगरीमा गयो, // 20 // तया नत्सु. क बनेलो एवो ते अगलदत्त त्यां पोताना पिताना मित्रने मख्यो, त्यारे तेणे पण खवरयंतर प. बतां केटलीक मुश्केलीए तेने नळ्खी कहाड्यो. // 51 // पजी तेणे तेने पोताना खोलामां. | सामीने तथा नेटीने कमु के हे वत्स ! तारी कुलीननी पण आवी दशा केम थ? // 5 // . P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust ..