________________ धम्मि- ताः पुनः // 4 // परापत्पृलकाः प्रायः / पृथ्व्यां संति परःशताः // विरता एव दृश्यते / परापनः / जना जनाः // 45 // शोकांधकारितं सद्यो / विद्योतयिषसे यदि / कुलदीप मुखं मातु-स्तदाक: एर्णय तत्परः // 46 // 350 ह ते सहते नव्या-धिकारी न कलाग्रहं // संहते हंत दीपस्य / प्रगां किं शलनाः क. चित् // 4 // कोशांब्यामस्ति वस्तुस्ते / सतीर्थ्यो रसिकः सखा // नाम्ना दृढपहारीति / रीतिका खा, बाव्यपणामां स्वजनोनी दृष्टिमां अमृतसरखा, तथा यौवनवयमां कुटुंबनो नार नपामनारा तो कोश् वीरला बे त्रज पुत्रो नीवडे . / / 44 // वळी प्रायें परनु दुःख पूजनारा तो सेंकमोगमे. माणसो था दुनियामां ने, परंतु परतुं दुःख नाश करनारा तो वीरलाज देखाय . // 45 // व ळी हे कुलदीपक पुत्र! शोकरूपी अंधकारथी ऊंखवाएं थयेडं था तारी मातार्नु मुख जोतं तेज स्वी करवाने श्वनो हो तो तुं सावधान थश्ने सांजळ ? // 46 // . यहीं नवो अधिकारी तारा कलाभ्यासने सहन करशे नहि, केमके पतंगीयां शं क्यांय दी. - | पकनी कांति सहन करी शके ? // 4 // हवे कोशांबी नगरीमां शास्त्र अने शस्त्रोनी कलमां | PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust