________________ धम्मि- / स्वस्यागमनकारणं // 53 // रुदन्नुदश्रुःखेन / गदोक्तिर्जगाद सः // दृक्सुधासत्र हा मित्र मा / क मया दृदयसे पुनः // 14 // अकस्मादश्मवृष्ट्येव / तवाऽकल्याणवार्तया // श्रवणाचाया स | द्यो / हृदयं स्फुटतीव मे // 55 // वत्स त्वमपि विवाय-वदनो मारुदः सदा // श्रदीणशक्तिदे. 360 | वेंडे-ष्वपि दैवं विचिंतय // 56 // कलाकुलीनतारूप-विद्यावीर्यादयो गुणाः // देवदावानलस्या ग्रे। यांति जीर्णतृणोपमां / / 57 // निरस्य शोकमभ्यस्य / कला श्ह कुलोदह // त्वमेव नवतां सारे ताजा थयेला पिताना शोकथी तेणे पण आंसु खेखतांथकां पोताना पितानुं मरण कहीने पोताना याववानं कारण कहां. // 23 // त्यारे ते दृढप्रहारी पण सुःखयी रमतोथको अांखोमां यांसु लावीने गाद कंटे बोल्यो के अांखोमां अमृतन) नहेरसरखा हे मित्र ! हवे फरीने तं मने क्यां देखाश? // 54 // अचानक पचरना वरसादनीपेते तारां मृत्युनी बात कर्णगोचर थवाथी मारु तो जाणे हृदय फाटी जाय . // 55 // हवे हे वत्स! तुं पण हमेशां निरानंद मुखवाळो थश्ने म नहि, महाशक्तिवाळा देवेंडोनां देवनो पण तुं विचार कर ? // 16 // कला, कुलीनपणु, रूप, विद्या तथा वीर्य आदिक गुणो पण कर्मरूपी दावानलपासे जीर्ण घाससरखी दशा पा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust