________________ 361 धम्मि प्राप्त / श्वामोघरथो भव // 27 // एवं तदाक्यपीयूष-पानधत्ताध्वजश्रमः // सततं स ततोऽध्ये | तुं / प्रावर्तत शुनेऽहनि / / 27 // अस्मै सुतधिया सोऽपि / कलातत्वमुपादिशत् // योग्यशिष्येषु | गोपायन् / नाम्नायं पापनाग्गुरुः // 60 // सकुंतलाजा सद्धाण-स्फुरदतविग्रहा // अस्य यूनो धनुर्वेद-विद्या बाढं प्रियानवत् // 61 // नवोपात्तकलान्यास-कौतुकी स सदा ययौ // प्रातः प्रातरनाबाधः / स्वगुरोहनिष्कुटं // 62 / / नालस्य धाम्नि सद्वृते / सूर्यालोकादिकखरे // शुचिपदामे. // 17 // हवे हे कुलीन! शोक जोडीने तथा अहीं कलानो अभ्यास करीने तुं पोतेज नवा अमोघरथसरखो था? // 57 / / एवी रीतना तेना वचनरूपी अमृतपानथी मार्गनो थाक दर थवाथी तेणे शुभ दिवसे निरंतर कलान्यासनो प्रारंन कर्यो. // 27 // ते दृढपहारीए पण तेने पुत्रमाफक लेखीने कलान्यास कराव्यो, केमके योग्य शिष्योपते पण कला बुपावनारो गुरु महा. पापी कहेवाय . // 60 // नालांनी कलाना लाजवाळी ( चोटलानी शोगावाळी ) उत्तम बाण थी स्फुरायमान थता अद्भुत संग्रामवाळी ( शरीरवाळी) एवी धनुर्वेदन विद्या ते युवानने सी. | सरखी प्रिय थ पडी. // 61 // नवो कलान्यास करवामां उत्सुक बनेलो ते अगलदत्त हमेशा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust