________________ धम्मि- श्रिते तिष्ट-त्यब्जे श्रीः पुंसि भारती // 63 // अथान्यदा तदासन-वेश्मवातायनस्थिता // तम. भ्यासपरं काचि-न्मदिरादी निरैदत // 64 // सोऽन्यासवशतो बाह्यं / वेध्यं विध्यन्नवंध्यधीः // विव्याध वस्तुतो वीर-श्चलं सूदमं च तन्मनः // 65 // परिझापयितुं स्वं सा / पुष्पवृष्टिमिवामरी // 361 | फलोत्पलादिनिक्षेपं / तस्योपरि विनिर्ममे // 66 // सोऽपि तां सुनगां पश्य-ननुरागं दधौ हृदि कई पण बाधाविना प्रजाते उठीने पोताना गुरुने घेर जतो. // 6 // उद्योगना स्थानरूप (ना. लना स्थानरूप) नत्तम आचरणवाळा (गोळाकार ) गुरुने जोश्यानंदित थनारा (सर्यने जो विकस्वर थनारा) तथा पवित्र पदावाळा (पांदडीवाळा) कमळसरखा पुरुषमां लक्ष्मी भने स रस्वती रहे . // 3 // हवे एक वखते तेनी नजीकना घरना जरुखामां बेठेली कोश्क युवतीए अभ्यासमां तत्पर एवा ते अगलदत्तने जोयो. // 64 // ते महाबुध्विान अगलदत्त श्रन्यासने लीधे बाह्य लक्ष्यने तो विंधतो हतो, परंतु ते सुभटे मुख्यत्वे तो तेणीनुं चंचल अने सूक्ष्म मन वीधी नाल्यु. // 65 // हवे ते युवती पोतानो अभिप्राय जणाववामाटे देवी जेम पुष्पवृष्टिने ते. | म तेनातरफ फल कमल थादिक फेंकवा लागी. // 66 // त्यारे ते अगलदत्त पण ते मनोहर P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust