________________ धम्मि- // न पुनः प्रकटीचक्रे / गुरुशंका गरीयसी / / 67 // एवं चाचिंतयनारी-विलासवशां नरं // वि. द्या सापल्यजीतेव / सेवते न कदाचन // 60 // अहो धैर्य पुरंध्रीणां / यदझाततले जने // प्र. सा कामति पदं दातुं / तरण्य व वारिधौ // 6 // // चेतस्तरौ गुरुपदप्रणयांबुसिक्ते / विद्याफलान्यवि. 363 कलानि कथं प्रयते // सोऽयं सलीलललनाकलनातिगोक्ति-वात्याविवर्तविवशः परिधूयसे चे. | त // 70 // तस्थौ तमोमयी यत्र / कामिनी दर्शयामिनी // हृदि दीणा क्षणात्तत्र / कला युक्तं क| स्त्रीने जोश्ने हृदयमां अनुराग धरवा लाग्यो, परंतु तेणे ते प्रकट कर्यो नहि, केमके गुरुनो डर जबरो होय . // 67 // वळी ते एम विचारवा लाग्यो के स्त्रीना विलासने वश थयेला पुरुषने विद्या सपत्नीपणाथी मरती होय नहि तेम कदापि पण तेने सेवती नयी. // 6 // अहो! स्त्री. न केवं धैर्य ! के जेन समुद्रमा जेम होडीन तेम अजाण्या पुरुषमां पण पोतानो पगपेसारो करी दे , // 67 // जो विलासी स्त्रीननां न कळी शकाय एवां वचनरूपी वायुना वंटोळीयाना | जपाटाथी मनरूपी वृद अति कंपायमान थाय तो गुरुना चरणनी कृपारूपी जलयी सींचाया पण ते वृत विद्यारूपी मनोहर फलोने शीरीते विस्तारी शके ? / / 70 // जेना हृदयमां अमावा. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust