________________ साथै | 446 धम्मि- रथी॥ नक्तपानं महानक्ति-रदत्तोदात्तमानसः // 27 // तस्मिन्निवृत्ते तप–साधुसंघाटकोऽपरः // तत्राययौ सोऽपि तेन / तथैव प्रत्यलान्यत // 27 // तस्मिन्नपि गते साधु-इंदमागातृतीयक // तदपि प्रतिलानय्य / मनीषी विममर्श सः // 17 // किं पुरेऽत्रास्ति पुर्मिदं / किं वा लोको 1/ मितंपचः // रथ्या वा गहना येना-यातावेतौ पुनः पुनः / / 60 // सोऽथ पप्रब तो नत्वा / साधू ममता राखता नहोता. // 56 // एवा ते मानरहित मुनिना जोमलांने नमीने उत्तम नावनाथी अत्यंत नक्ति लावीने नदार मनथी अगलदत्ते नातपाणी थाप्यां. // 17 // हवे ते साधुन ग. याबाद तेनाज सरखा रूपवाळा बीजा बे साधुन त्यां याव्या, त्यारे तेनने पण तेणे एवीजरीते प्रतिलान्या. // 27 // पजी ते पण गयावाद तेना जेवुज त्रीजु साधुनुं जोमबुं याव्यं, तेने प. ण प्रतिलानीने ते बुध्विान अगलदत्ते विचार्यु के, // 55 // शुं या नगरमां शुष्काळ पड्यो ? अथवा यहींना लोको शुं कृपण जे? अथवा शुं शेरीन नीमानीडवाळी , के जेथी या बन्ने साधुन फरी फरीने यहीं श्राव्या! // 60 // पनी तेणे तेनुने नमीने पूज्युं के हे मुनिन ! था. |प क्या जतर्या गे? अमो वनमां नतर्या जीये, एम कहीने तेज बने साधुन पण वनमां गया. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust