________________ 442 धम्मि- // 30 // गतेऽथ खेटे नीता सा / मध्ये देवकुलं जगौ // ध्वांतांजनसमुक्षेत्र / वसंतीश बिने / सार्थ | म्यहं // 35 // तयादिष्टस्ततो वह्नि-मानेतुं प्राचलज्थी // पुरंदरनिदेशेना-नियोगिक श्वा मरः // 40 // चितेः समुचिते वहा-वहाय ववले रथी॥ मानुदेकाकिनी श्यामा / श्यामास्येति विचिंतयन् // 41 // यस्याः करोषि दासत्वं / तद्वृत्तं दृदयसि स्वयं // वह्निर्घटीस्थितोऽहासी—दि. ति द्युतिमिषेण तं // 42 // बागबन्नयमालोक्या-लोकं देवकुलांतरा // अप्रादीदायतादी ताने यावी स्तुतिनंथी हवे वधारे बोजावाळो न कर ? केमके हजु मारे अाकाशमार्गे दर जवानं बे. // 30 // पजी ते विद्याधर गयाबाद तेणीने अगलदत्त देवमंदिरनी अंदर ले गयो, त्यारे ते बोली के हे स्वामी! अंधकाररूपी अंजनना डावमासरखा था देवमंदिरमा रहेवाथी हं डरूं बं. // | // 35 // पनी इंजना हुकमथी जेम बानियोगिक देव तेम तेणीए कह्याथी अगलदत्त अनि ले. वा चाल्यो. // 40 // मारी त्यां एकली रहेली श्यामदत्ता गजराय नहि तो ठीक, एम विचारीने अगलदत्त कोश्क चितामांथी अनिलेश्ने त्यांची तुरत पाडगे वल्यो. // 41 // जेणीनुं तुं दासप. |एं करे ने तेणीनुं पाचरण तुं पोतेज जोश, एम माटलीमा रहेलो अनि कांतिना मिषथी ते PP.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust