________________ साथ धाम्म-| खेचराधीश / जय त्वं करुणाकर // जय वं अखिनां बंधो / जय त्वं जीवितप्रद // 34 // नृयां / सोऽपीह वीदयंते / कारणेनोपकारिणः // निष्कारणोपकारित्वं / त्वध्यगीष्ट कुतो नवान् // 35 // कुति नंति वा कार्य / ये प्रस्तावबहिर्मुखाः // तेषां हीनाथ दीनाना-मपि ददोपमा त्वयि // 36 // 441 प्राणेन्योऽपि प्रियतमा–मिमां जीवयतः प्रियां // प्राणैरपि निजैर्दत्तै-हिं स्यामनुणस्तव // 37 // | खगो जगौ रथिन्मा मां / नारय स्तुतिभिर्भृशं // यतो ममास्ति गंतव्यं / दुरेऽद्यापि ननोऽध्वना | पण विस्मित थयोथको हाथ जोडी नमाने ते विद्याधरनी स्तुति करवा लाग्यो के, // 33 // हे खेचरेश्वर! हे करुणाना भंडार! हे दुःखीनना बंधु! हे जीवितदान देनार! तुं जय पाम ? // 3 // या जगतमां कारणने लेश्ने तो घणा नपकारीन देखाय बे, परंतु कारणविना नपकार करवानुं तं था क्याथी शीख्यो ढुं? // 35 // वली हे दद! जे प्रस्तावथी बहिर्मुख थयाथका कार्य क₹ने अथवा हणे , एवा दीन मनुष्योनी उपमा पण तने यापवी ए लायक नयी. // 36 // प्राणोथी पण अत्यंत वहाली एवी था मारी स्त्रीने जीवामनारा एवा तने हुं मारा प्राण थापवाथी | तारा करजथी मुक्त थ शकुं नहि. // 37 // त्यारे विद्याधर बोल्यो के हे अगलदत्त ! तुं म Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.