________________ धम्मिमंतोतिः किमीदितं // 43 // सहसा स्माह सा माया-मयी कि प्रिय पृज्यते // योऽमिस्त्वया हृतस्तस्यै–तत्तेजः प्रतिबिंबितं // 4 // ततः ख समास्या / वहिं सोऽदीपयत् स्वयं // प्रिया. प्रयासन्नीरु -न्यस्तजानुवाङ्मुखः // 45 // करवालं करात्तस्याः / सहसा पतितं पुरः // विलोक्य 443 व्याकुलोऽपृबत् / किमेतदिति स प्रियां // 46 // सावदगुज्यते देव / तद्दूरे न स्त्रियः करे॥त. अगलदत्तनी हांसी करवा लाग्यो. // 42 // हवे तेणे आवतांथकां देवमंदिरनी अंदर प्रकाश जो. इने विस्तीर्ण नेत्रवाली पोतानी स्त्रीने तेणे पूठ्युं के अंदरना नागमा मने प्रकाश केम देखा यो? // 43 // त्यारे ते कपटी श्यामदत्ता एकदम बोली उठी के हे प्रिय! एमां ते शुं पूगे गे? जे या तमो अमि लाव्या गे, तेना तेजनुं प्रतिबिंब पम्युं होशे. // 4 // पनी अगलदत्त मा. री प्रियाने तस्दी आपवी ठीक नहि एम विचारी तेणीने खा थापी पोते पृथ्वीपर घुटण राखी नीचे मुखे अनि फुकवा लाग्यो. // 42 // एटलामां तेणीना हाथमाथी अचानक तलवार पमी गश, ते जो व्याकुल थयेला अगलदत्ते तेणीने पूज्युं के था शुं थयु ? // 46 // त्यारे ते बो. ती के हे स्वामी! था तलवार तो थापना हाथमांज रहेवी जोश्ये, स्त्रीना दायमा रहेवी न जो Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.