________________ घमि- ननाय सः // 15 // व्यापन्नामिव निश्चेष्टां / विषविध्वस्तचेतनां / / पत्नी पश्यन् स तत्याज / धैर्यः / | धामापि धीरतां // 16 // यस्त्यस्या अगदंकारः / कापि कोऽपीति वीदितुं // अत्युत्सुक व ही. पां-तरं नानुस्तदा ययौ // 17 // हृदुःखेनैव रथिन-स्तमसा जग्रसे जगत् / / तदास्य श्व घि. 437 | कारै-स्तारैोम्नि व्यजृन्यत // 17 // पंथा न पंथा सार्थना-बुलोके म्लानदृष्टिना // श्यामाया दीधो. // 14 // मार्गमां वायुथी याने विशेष झेर न चडे तो ठीक एम विचारीने तेणीने ते ए. क नजीकना देवमंदिरमां ले गयो. // 15 // ते वखते जाणे मरी गश् होय नहि तेम चेष्टाविनानी तथा फेरथी बेनान थयेली पोतानी ते स्त्रीने जोश्ने अति धैर्यतावाळा पण ते अगल. दत्ते धीरज गेडी दीधी. // 16 // हवे याने माटे क्यांय को पण वैद्य ने के केम ? तेनी तपा. समाटे जाणे अति उत्सुक थयो होय नहि तेम सूर्य पण ते वखते हीपांतरमा गयो. // 17 // सारे ते अगलदत्तनुं हृदय जेम दुःखथी तेम जगत् अंधकारथी व्याप्त थयु, तथा अाकाशमां जेम ताराज तेम तेना मुखमाथी धिक्कारो प्रकट थवा लाग्या. // 10 // वळी ते श्यामदत्ताने जीवाड. वाना नपायमाटे मूढ बनेला अने म्लान दृष्टिवाला एवा ते अगलदत्ते तेज प्रयोजनमां लीन Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.