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________________ साग 430 खसाद धम्मि जीवनोपाय / श्व मूढधियामना // 10 // तौ दंपती निरीदयेव / कोकदंदैर्व्यघट्यत // सरस्सु मी लितं पद्म-रनयोनयनैखि // 20 // क्रोमीकृत्य प्रियां देव-कुलहारे निशाजरे / रुरोद रथिका | स्तार-मश्रुधाराः किरन दृशोः // 21 // गुणान्निरामे हा रामे-श्वरि श्यामे समाशये // बहुदुः. खसाहये त्वं / किं प्रेयसि न जाषसे // 1 // संस्तुतेऽप्युपेत्य त्वं / मय्यरज्यस्तदा मुदा // संप्रति प्रीतिपात्रं मां / किं प्रेयसि न भाषसे // 23 // धनाच जीविताचाहं / विशिष्ट वामजीगणं // थश्ने मार्गतरफ पण दृष्टि करी नहि. // 17 // ते बन्ने स्त्रीजरतारने जोवाथीज जाणे कोकपक्ति जंना जोडलां वियोगी थयां, थने तेज बन्नेनी अांखोनीपेठे तलावोमां कमळो बीमा गयां. // // 20 // हवे रात्रिए देवमंदिरना दरवाजामां ते बगलदत्त पोतानी प्रियाने पालिंगन देने यांखोमांथीयांसुनी धारा कदामतोथको मोटेथी रमवा लाग्यो. // 21 // हे गुणियल! हे जी. वितेश्वरी ! हे श्यामा! हे शुल आशयवाळी! तथा हे घणा दुःखोमां सहायभूत एवी प्राणप्यारी ! तु केम बोलती नथी? // 15 // ते वखते परिचयविना पण तु मारीपासे यावीने मारामां अनु. रागवाळी थर हती, परंतु हे प्रियतमा! हाल तुं मने प्रीतिपात्रने पण केम बोलावती नथी? / / PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036432
Book TitleDhamil Charitra Bhashantar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1914
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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