________________ धम्मि- चेटबुध्यापि मामध। किं प्रेयसि न भाषसे // 14 // यो जिगाय पथि व्याल-व्याघचौरादिकान सुखं // सोऽहं हतोऽस्मि दैवेन / हरता जीवितेश्वरी // 25 // एष वच्मि हितं हो / शृणुतोद्या| नदेवताः / माघदद्य वनस्यास्य / रक्ष्यतां स्त्रीवधायशः // 26 // कापि नागदमन्यस्ति / यदि यु. 435 ष्मासु रे लताः // तदाविरस्तु सा नावी / नेदृशोऽवसरः पुनः // 27 // कापि रात्रिबलात्वा / हे रात्रिमटपक्षिणः // वीदाध्वं मेषजं यूयं / ध्वांतध्वस्तहगरम्यहं // // एवं तदा तदाकंदै / खे च. // 23 // हुँ तने धनथी तथा जीवितथी पण अधिक मानतो हतो, तो बाजे हे प्यारी ! मने दा सनी बुछिए पण केम बोलावती नथी? // 24 // मार्गमां हाथी, वाघ तथा चोर आदिकने जे. णे सुखेथी जीत्या हता, एवा मनेज मारी प्राणप्यारीने हरता एवा दैवे बाजे हणी नाख्यो जे. // 25 // अरे उद्यानदेवीन! या हुं तमोने हितवचन कहुं बु ते सांजो ? स्त्रीवधथीथता बपयशथी तमो या वननुं रदाण करो? // 26 // अरे लताज! तमारामां जो कोश् नागदमनी ना मनी लता हो तो ते प्रगट थान ? केमके फरीने आवो अवसर नहि यावे. // 27 // अरे निशाचर पदिळ ! रात्रिना बळ्थी तमो क्यांक जश्ने औषधनी तपास करो? केमके हं तो अंधका Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.