________________ धाम्म- चलतस्तस्य / सानुमानिव जंगमः / / दाढ्य गतस्तमःपूर-श्व प्रादुरभृदिनः // 55 // प्रसारयन्मुः। साई खं नीष्म-मंधकूपसहोदरं // शुंडां तांडवयन् दंड-धरदोईडवद्दिवि // 55 // रुष्यन् वायोरपि स्पर्श-ऽप्यमृष्यंस्तुंगतां तरोः // पत्रेऽपि पतिते कुप्य–निजबायामपि हिषन् / / 56 // लता मृद्रंस्तरून नजन् / जूतग्रामं च भापयन् // दृष्टमात्रोऽप्यसौ रथ्य-हयत्रासमजीजनत् // 57 // थामत्तः स्फुरत्सत्व-स्तस्य कुन बिनेद सः // शुन्निस्तिसृनिर्मोहं / निग्रंथ श्व गुप्तितिः // 5 // गम पर्वतसरखो तथा जाणे अंधकारनो समुह घाटो थश्ने पड्यो होय नहि एवो एक हाथी प्र. कट थयो. // 55 // अंधारा कुवासरखं जयंकर मुख फाडतो, यमना भुजादंमसरखी सुंढने पाका. शमां नचावतो, // 55 // वायुनो स्पर्श थतां पण क्रोधायमान थतो, वृदनी जंचाइने सहन न हि करतो, पांदखें पमवाथी पण कोप पामतो, पोतानी गयाप्रते पण क्रोधातुर थतो, / / 56 ॥वे. खमीनने कचरतो, वृदोने चांगतो तथा जंतुनना समुहने डरावतो एवो ते हाथी नजरे पमयो. घको पण स्थना घोमाने त्रास पमाडवा लाग्यो. // 57 // त्यारे स्फुरायमान पराक्रमवाला ते अ. . गलदत्ते साधु गुप्तिनवडे जेम मोहने तेम त्रण बाणोथी ते हाथी- कुंभस्थल भेदी नाख्यु. // | P.P.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust