________________ 473 धम्मि- .. अथ पंजरनिर्मुक्तः / पदीव सकलामिलां // समुद्रो ब्राम्यदन्यान्य-नेपथ्यग्रहणाग्रहः // // 31 // वर्षाणि द्वादशातीत्य / स कार्पटिकवेषभृत् // जिज्ञासुः स्वप्रियावृत्तं / पुनस्तत्पुरमाययौ / // 32 // धनस्य सोऽमिलत्तेन / किं वं वेत्सीत्यनाष्यत // सर्व वेद्मीत्यनेनोक्ते / प्रत्युवाच धनः पुनः / / 33 // नंदारांग मदाराम-जुमांस्तर्हि विवर्षयः॥ एकैकं रूपकं दास्ये / कर्मभर्मणि तेऽ: | न्वहं // 34 // प्रसत्तिस्तव यद्यस्ति / रूपकैस्तदलं मम // इति तस्य प्रियालापैः / समाधत्ताधिक हवे पांजरामाथी बुटा थयेला पदीनीपेठे समुद्रदत्त जूदा जूदा वेषो लेने समस्त पृथ्वीपर जमवा लाग्यो. // 31 // एवी रीते बार वर्षों वीत्याबाद ते समुद्रदत्त कापमीनो वेष लेश्ने पोता. नी स्त्रीनी हकीकत जाणवामाटे फरीने ते नगरमां थाव्यो. // 32 // पनी त्यां ते धनश्रेष्टीने म. ब्यो, तेणे तेने पूज्युं के तुं शुं जाणे जे? त्यारे समुद्रदत्त बोब्यो के हुं सघg जाएं बु, त्यारे वळी ते धनश्रेष्टी बोल्यो के, // 33 // हे मनोहर शरीरवाळा! त्यारे तुं मारा बगीचाना वृदोनुं पो. षण कर? थने ते कार्यमाटे तने हमेशां एकेक रुपीन हुँ पापीश: // 34 // जो यापनी कपा तो मारे रुपीयानी कई जरुर नथी, एवी रीतनां तेनां प्रिय वचनोथी ले धनशेत अधिक ख P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust