________________ धाम्म- चीना / हीना वेति जंगाद सः॥७॥ ते.प्रोचुर्मुग्ध केनापि / विप्रबुब्धोऽसि मायिना // मान | | कूटानपि प्राप्य / यद्वाल व नृत्यसि // // स दुःखं कृत्रिमं तत्र / दधानोऽथ धरातले // विबु. लोठ कृतानंद-ममंदं ताडयन्नुरः // ए // ततः प्रसृतकारुण्यैः / स तैरालापि तापसः // शुचालं | संति दीनारा / नुयांसो नस्तवैव ते // 10 // सार्थ सार्थ स विझाय / न्यायहीनो वहन्मुदं / / च. चाल तैः सह व्याल / श्व नित्यं दुराशयः // 11 // निध्याय तं रथी दध्यौ / क्रूरं कृतधियां वरः यापो? // 7 // त्यारे (ते जोस्ने ) तेन बोल्या के अरे मुग्ध ! कोश्क कपटीए तने ठग्यो . के जेथी या खोटी महोरो मेलवीने पण तुं बालकनीपेठे नाचे में. // 7 // त्यारे दुःखी थयानो ढोंग करीने ते पृथ्वीपर लोटी पड्यो, तथा घाणु रुदन करतोयको गती कुटवा लाग्यो. // // यारे दया भाववाथी तेनए ते तापसने कह्यु के हवे तुं शोक कर नहि, अमारीपासे घणी सो. नामहोरो ने. अने ते सघळी तारीज जे. // 10 // हवे ते सार्थने धनवाळो जाणीने ते बच्चो ता. पस हर्ष पामतोथको सर्पनीपेठे हमेशां दुष्ट पाशयवाळो थयोथको तेनीसाथे चालवा लाग्यो. | // 19 // हवे बुध्विानोमां श्रेष्ट एवा ते अगलदत्ते ते तापसने क्रूर जाणीने विचार्य के, घासथी P.P.AG..Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust