________________ धम्मि- चिरादुत्कंठितोऽस्म्यहं // 3 // परं क्रूरकरिख्याल-दीपिचौराकुले पथि // शक्तो न गंतुमेकाकी / | नाकीव दितिजालये // 4 // प्रपद्ये भवतां सार्थ / न नवत्यधृतिर्यदि // परवाधकरी चेष्टा / नेष्टा / | क्वापि तपस्विनां // 5 // एह्येहि मा विलंबिष्टा-स्तैरियुक्तोऽखिलैरपि // दीनास्योऽदर्शयदसौ / / 413 | दीनारान पंचविंशति // 6 // श्मान ममास्तिकः कोऽपि / देवार्थमदान्मुदा // तदमी. किं समी. ने कह्यु के, // 2 // सिप्रा नदीना जलथी निवारण थयेल ने सर्व पापो जेमांथी एवी नायिनी नगरीप्रते जवाने हुं श्रावक घणा काळथी नत्कंठित थयेलो इं, // 3 // परंतु क्रूर हाथी, सर्प वाघ तथा चोरथी व्याकुल थयेला था मार्गमां देव जेम दैत्योना स्थानमा तेम हुं एकाकी जय शकुं तेम नथी. // 4 // माटे जो तमोने कई हरकत न होय तो हुं तमारो सथवारो लेनं, के मके परने हरकत यावे एवी चेष्टा क्यांय पण तपस्वीनने इष्ट न होय. // 5 // अरे! तं पण चालने खुशीथी, परंतु हवे विलंब न कर ? एम तेज सघळाए. कह्याथी ते तापसे दयामणे चहेरे पोतापासे रहेली पचीस सोनामहोरो तेजने देखाडी, // 6 // घने बोल्यो के कोश्क आस्तिके देवपजामाटे मने था सोनामहोरो हर्षथी थापी ने, माटे या साची डे के खोटी ते मने जो Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S.