________________ धम्मि- स्नेहो नस्मनि वैशा / मष्यां शैत्यमिवानले // सौम्य कापि सुखं नास्ति / व्यापकापक्रे नवे / / माई // 4 // ये संयोगास्तनुमता-माधमुन्मादकारणं // तेषां निष्टावियोगो हि / व्यापाराणां विपद्य ते // 4 // यत्सर्वबंधुसंहारा-दारात्त्वग्मात्रसारता // तस्य चिंतय वैरस्य / खदेहस्यायतौ ध्रुवं // | // 4 // दिनानामिव जंतूनां / वृधिहानिश्च निश्चिता // श्रासत्तिं विप्रकृष्टिं च ।याति पुण्यविवस्वति // 10 // कैः कैर्युक्तो विनक्तो वा / नवेद्देही न देहिन्निः / / पुलिंद व चिन्वानः / फलानि तरुन्निवने // 51 // तत्त्यक्त्वा खजनवात-मनैकांतिकमध्रुवं // आत्यंतिक ध्रुवं धर्म-मे वैकं शीतलता नथी तेम हे सौम्य ! दुःखथी नरेला या संसारमा क्यांय पण सुख नयी. // 4 // प्रा. पीनने जे संयोगो प्रथम हर्ष करनारा थाय , ते व्यापारोनो खरेखर निश्चयथी वियोग थाय 3. // 4 // वळी तु विचार के जे सर्व स्वजनोना नाशयी फक्त तारुं शरीर शोजीतुं थयं ने, ते तारं शरीर नविष्यकाळमां खरेखर नाश पामशे. // 4 // पुण्यरूपी सूर्य जगते तथा प्रायमते बते दिवसोनी पेठे प्राणिननी वृधि अने हानि निश्चित थयेली . // 20 // वननी अंदर फळ | एकठा करतो निल जेम वृदो साथे तेम था संसारमा प्राणी कया कया प्राणिन साथे संयोग- | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust