________________ धम्मि- जि / निर्व्याज वर्मभूषणं // सा मृत्प्रस्तरयोहेम-मण्यो र विनति किं // ए॥ श्रास्तामयं | मा सुरेंद्रोऽपि / मम शीलमहामणि // हर्तु हृदयमंजूषा-मध्यस्थं न प्रयते // ए३ // एवं तनिश्चयं - सादा-दीदयालं स चमत्कृतः // तदादेशात्तलारदं / न्यधान्निधिमिव दितौ / ए४ // अन्यदा तेन को नर्ता / तवेत्युक्तान्यवत्त सा // अवंतीस्थो ममोहोढा / समुः सागरांगनः // 5 // थापाणिपीमनदिना-परमेष कचिद्ययौ // अनाहारनाग्यौ / चातकस्येव वारिदः // 6 // दि. रे ? // ए॥ अरे या कोटवाल तो एक बाजु रह्यो, परंतु देवेंऽ पण मारां हृदयरूपी पेटीमां रहेला शीलरूपी महामणिने हरवाने समर्थ नथी. // 53 // एवी रीते सादात तेणीनो नि: श्चय जोश्ने ते अत्यंत आश्चर्य पाम्यो, तथा तेणीना हुकमथी तेणे निधाननीपेठे कोटवालने जमीनमां दाटी दीधो. // 4 // पनी एक दिवसे ते विनीते तेणीने पूज्युं के तारो चार कोण ने? त्यारे ते बोली के अवंती नगरीनो रहेवासी. सागरदत्त शेग्नो समुद्रदत्त नामे पुत्र मने परएयो बे. // 5 // परंतु विवाहना दिवसथी मामीने मारां अतिशय बजाग्योने लीधे चातकाते / जेम मेघ तेम ते क्यांक चाल्यो गयो ने. // 6 // अने त्यारथी वनमां उगेली मालतीनीपेठे PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust