________________ धम्मि जगवान गुणवर्मापि / गुरोरागमितागमः // विजदार महीपीठे / निःसंगो वायुवच्चिरं // 10 // स / उस्तपतपःकर्म-दालिताखिलकटमषः // मखजुग्जवनं जे / कृतकालः समाधिना // 11 // तत च्युतः सुतत्वेना-वतीर्य विमले कुले // स प्राप्तचरणप्रौढि-गता लोकोत्तरं पदं // 15 // इति नि३५० शम्य कथां गुणवर्मणः / सुरसरिकालनिर्मलकर्मणः // विषयविप्लव विव्रमनंजनाद् / भवत सौख्य| जुवः सततं जनाः // 13 // इति श्रीगुणवर्मकथा // अनंतो संसार नमशे, अने पगले पगले विकट दुःखो सहन करशे. // 5 // हवे ते जगवान गु. पवर्मा मुनि पण गुरुपासे यागमोना जाणकार थश्ने वायुनीपेठे संगरहित घणा काळसुधि पृ. थ्वीपर विहार करवा लाग्या. // 10 // श्राकरा तपथी सर्व कर्मोरूपी पाप धोने समाधिपूर्वक काळ करीने ते देवलोकमां गया. // 11 // पनी त्यांची चवीने निर्मल कुलमा अवतरीने चारित्रनी पौ. थता मेलवीने ते मोक्षे जशे. // 12 // एवी रीते देवगंगासरखा निर्मल पाचरणवाला गुणवर्मा नी कथा सांनळीने हे लोको ! तमो विषयोनी खराबीनो नंग जांगीने हमेशां सुखोना स्थानरूप था ? // 13 / / एवी रीते श्रीगुणवर्मा कुमारनी कथा संपूर्ण थ.॥ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust