________________ धाम्म 34 // श्रीजिनाय नमः // // अथ श्रीधम्मिलचरितं नाषांतरोपेतं प्रारभ्यते // . (तृतीयो नागः). ........ ( मूलकर्ता–श्रीजयशेखरसूरिः) नाषांतरकती- श्रावक मनसुखलाल हीरालाल हंसराज. (जामनगरवाळा ) - ततस्ता ददिरे तस्या / विषं विषयगृह्णवः // श्राचरंति न किं पापं / विषयाा हि योषितः // // 7 // अथासमाप्तनोगेग / रौद्रध्यानवशंवदा // मृत्वा सा नरकं तु] / पाप पापत्नरेरिता // 7 // ततोऽप्युधृत्य संसार-मनंतं सा ब्रमिष्यति // सहिष्यते च दुःखानि / दुःसहानि पदे पदे // 5 // पजी तेनए विषयमा लालचु बनीने ते कनकवतीने फेर पाप्यु, केमके विषयांध स्त्रीने शं पाप थाचरती नथी? // 7 // हवे जोगोनी श्वा समाप्त नहि थवाथी रौऽध्यानमां पडेली तेक नकवती पापोना समुहथी प्रेराश्यकी मरीने चोथी नरके गइ. // 7 // त्यांची पंण निकलीने ते Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.