________________ धम्मि- खनीषु रजनीधिया // दिवापि जझिरे यत्र / वाचाटाः करटारयः // 45 // अनादिनारिन्निन्नेनमाई| कुंभनौंक्तिकोत्करः // यत्र तीवकरत्रस्त–तारकौघ ख्वागतः // 46 // बिले बिले सदर्पाणां / स. पाणां स्फारफूत्कृतैः // वायु विनाप्यदीप्यंत / यस्यां दवहविर्जुजः // 4 // निर्बध्यार्थ्यमानेषु / पांथेषु सकृपा श्व // रुदंति निरव्याजा-द्यस्यां पर्वतपंक्तयः // 4 // मूतैः पापैखि श्यामै-र. नसा वन्यसैरिनैः // यत्र प्रेर्यापनीयंते / पांथाः खंस्वामिनं पुरः // 4 // रिमायकुलाकी / चोरनीपेठे बुपाइ रहेलो ने, // 44 // वळी ज्यां अंधकारनी खाणसरखी पर्वतनी गुफा-मां रात्री जाणीने दिवसे पण घुवमो घूत्कार शब्द करी रह्या बे, // 45 // वळी ज्यां सूर्ययी मरीने ताराननो समुह जाणे आव्यो होय नहि तेम सिंहे मारेला हाथीननां कुंनस्थलमाथी निकळेलो मो. तीननो समूह शोनतो हतो. // 46 // वळी ज्यां दरेक बिलोमा रहेला जयंकर सोना जबरा फं. फाडानथी वायविना पण दावानल जोरथी सळगी रहेलो , // 4 // निलोए बांधवाथी कालावाला करता एवा पंथीप्रते जाणे दयालु थया होय नहि तेम ज्यां पर्वतनी हारो करणानना मिषथी रड्या करे . // 4 // वळी ज्यां मूर्तिवंत पापसरखा जंगली श्याम पाडा पंयोनी PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust