________________ धम्मि, त्वं त्वस्यां रज्यसेऽलऊ / धिक्पुंसां चपलं मनः॥ 40 // चौरस्य पत्नी चौर्येव / स्यादेत्तीत्यल्य धीरपि / / तस्यां हताश विश्वास-नाजो धिक्तव चातुरीं // 1 // अपत्रपिष्णुरित्युक्त्या / त्यक्त्वा रामा रमां च तां // प्रवृत्तः स पुरो गंतु-माससाद महाटवीं // 42 // पिशाच्यो यत्र खेलति / 421 | वेश्मनीव पितुः स्त्रियः // चरति रादसाः शून्य-ग्रामसीनीव तस्कराः // 3 // यत्र नानाध्वकुंजे षु / निलीनं स्तेनवत्तमः // सूरस्यापि दुराकर्ष / करैस्तीव्रतरैरपि // 4 // गुहासु दमाभृतां ध्वांतमी ने, अने हे निर्लज्ज ! तुं तो या स्त्रीमां मोहित थाय , माटे पुरुषोना चपल मनने धिक्कार . // 40 // वळी चोरनी स्त्री चोरज होय एम एक मूर्ख पण जाणी शके, अने एवी स्त्रीमां पण हे हताश! तें विश्वास कर्यो, माटे तारी चतुराश्ने धिकार बे. // 41 // तेणीना ते वचनथी लातुर थश्ने ते स्त्री तथा ते लक्ष्मीने गेडीने ते बागळ चालवा लाग्यो, तथा एक महोटी अटवीमां भावी पड्यो. // 42 // पिताना घरमा जेम स्त्री तेम पिशाचीन ज्यां खेली रही है तथा उज्जम गामनी सीममां जेम तेम ज्यां चोरो फर्या करे , // 43 // वळी ज्यां विविध मा. मां रहेता निकुंजोमां सूर्यनां अति पाकरां किरणोथी पण दूर न करी शकाय एवो अंधकार ) Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC. Gunratnasuri M.S.