________________ धम्मि- तद्गृहाणाखिलं व्याघ / श्व कुद्रार्जितं मधु // 35 // दद्या नदारदारूणि / व्यापन्नस्य पुनर्मम / / सार्थ एवं वदत एवास्य / प्राणाः पथिकवैद्ययुः / / 36 // सोऽपि बंधुखिाशंकं / ज्वालयामास तबवं ॥न | परप्रार्थनाभंगं / कचित्कुति तादृशाः // 31 // स्नातः सरिज्जले देव-कुलं सोऽगानिराकुलं / 420 बली शिलां समुध्धृत्य / ददर्श विवरं पुरः // 30 // दृष्ट्वा तदंतरा दांत-रतिरूपां स्त्रियं रथी॥ स्निह्यन स नुकुटीनंग-मवादि श्यामदत्तया // 35 // त्वत्कृते तत्यजे बंधु-वेश्मसारं मयाखिलं // तारे लेश लेवं. // 35 // वळी मने मरण पामेलाने तारे सारां काष्टोथी अमिदाह देवो, एम क. हेतांथकांज पंथीनीपेठे तेना प्राणो चाव्या गया. // 36 // पड़ी तेणे पण बंधुनीपेठे निःशंक थ. ने तेना शबनो अमिसंस्कार कर्यो, केमके तेवा सज्जनो परनी प्रार्थनानो भंग करता नथी.॥ // 37 // पनी ते तळावना जलमां नाहीने व्याकुल थयाविना ते देवमंदिरमां गयो. पनी तेव. ळवाने जेवी ते शिला नपाडी के तेवू त्यां नोयरुं जोयु. // 30 // वळी त्यां मनोहर रतिसरखा रूपवाळी स्त्रीने जोड्ने ज्यारे अगलदत्त तेणीतरफ स्नेहथी जोवा लाग्यो, सारे श्यामदताए जु· | कुटी चडावीने का के, // 35 // तारेमाटे तो में मारा बंधुनने तथा घरनी सर्व मिल्कतने गे. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust