________________ धम्मि- च / स्वामित्वमभिमानिता // सुखं च पंच नारीणां / न संत्यसति वल्लन्ने // 35 // तत्रापि क्स .मा बालोऽसि / विधेत्ति त्वत्पितुः पदं // चलप्रेमा ददौ नृमा-निहाभ्येत्य प्रहारिणे // 36 // दधाति सोऽधुना बाढं / नवं प्राप्य पदं मदं // विनवस्य ज्वरस्येव / प्रथमोष्मा मि दुस्सहः // 35 // यदा 356 -दव श्वाग्रेऽसा-वेति हेत्तीः प्रपंचयन // तदा मे गलतो नेत्रे / धीर घूमांधिते व // 30 // अ. स्फुटिष्यन्महाजात / कलिका कापि चेत्तव // न संपजमरीयं त-दत्रास्थास्यत्करीरके // 35 // यो. नथी. // 35 // तेमां पण हे वत्स ! तुं उमर अने बुद्धि बन्नेथी बालक नगे, अने तेथी प्रेम न तरी जवाथी तारा पितानी पदवी राजाए ठाही याधीने प्रतिहारने यापी . / / 36 // याज काल ते प्रतिहार नवीन पदवी पाम ने अत्यंत मद धारण करे , केमके ज्वरनी पेठे वैजवनी शिरुया. तनी नष्णता पुःखे सहन थर शके तेवी होय . / / 37 // वळी दावानलनीपेठे रोफ देखाड तो (ज्वाला विस्तारतो) ते ज्यारे नजीक थावे त्यारे हे धीर! मारी अांखो जाणे धूमांधित थ होय नहि तेम गल्या करे . // 30 // वळी हे पुत्र! जो तारी कळी करंक पण खाली हो. त तो था संपदारूपी जमरी कंथेरसरखा ते प्रतिहारप्रते विश्राम करत नहि. // 37 / / स्त्रीजन्ममा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust