________________ 355 धम्मि त्यमंब किमंबके // किं च ते गैरिकग्रस्त–गोधूमान्न तनुस्तनुः // 31 // जगौ यशोमती वस्त्रां चलेनोन्मृष्टलोचना // यस्तोकशोकसंकीर्ण-गलप्रस्खलददारं / / 32 // वत्स नृणां स्फुटेदुःखपूर्ण हृदयपटवलं / यदि तन्निर्गमोपायो / न स्यादश्रुबलाद् दृशोः // 33 // प्रौढेऽप्यश्रुपयःपूरे / | दीप्यमानेव मे तनुः // दग्धा गर्तृवियोगोर्वा–मिना पुष्टिं दधाति किं // 34 // देहबाया विभूषा | णो थवाथी रडती माताने पगे पडो बोल्यो के, // 30 // हे माता! तमारी बन्ने अांखो हमेशां व. | ांकाळना तळावजेवी केम ? तेमज तारुं शरीर पण गेरु लागेला घनं सरखं केम उर्बल ? | // 31 // त्यारे यशोमती वस्त्रना बेमायी अांखो बुझ्ने अत्यंत शोकथी जला गयेल गळांमांयी लथडता अदरोथी बोली के, // 32 // हे वत्स! जो अखिोना अश्रुना मिषथी दुःखने निकळवा | नो जपाय न होय तो दुःखोथी जरेतूं माणसोनुं हृदयरूपी खाबोचीलं फुटी जाय. // 33 // जो के बांसुर्नरूपी जलनो समुह घणो , तो पण मारुं बळतुं शरीर जाणे स्वामिना वियोगरूपी व. डवानलथी दग्ध युं होय नहि तेम शीरीते पुष्ट शश् शके ? // 34 // वळी स्वामिना मृत्यवाद / शरीरनी शोभा, भाषण, (घरनी ) मालीकी, अजिमानपणुं तथा सुख ए पांच वस्तुन होती। Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.