________________ धम्मि- जनावसरे बंधु-वियोगात्परिदेविनी // स कापि सरसि श्यामां / सप्रश्रयमनोजयत् // ए // वि. धाय वाजिनोस्तृप्तिं / तृप्तिं स्वस्यापि कल्पयन् // भूयो रथी रथारूढो / यो वर्त्म व्यलंघयत् // | // 5 // स ययौ कंचन ग्रामं / दशार्णविषयांतिकं // पिंडीत जनवातं / तस्य सीनि ददर्श च 411 // ए६ // तस्माद् द्वौ पुरुषों पाथ-वैषो रथिकपुंगवं // सरस्तीरे हयपयः-पानव्यग्रमुपेयतुः // 7 // तौ कुतः पथिकायासी / क गंतासीत्यपृबतां / नवाच सोऽपि कौशांब्या / गंतास्म्युऊयिनीमहं // सिंह तेम नगरमांथी निकळीने ते दिशादेवीने नमीने अवंतीने मार्गे चाल्यो. // ए३ // पजीनो. जनवखते बंधुऊना वियोगथी खेद पामती एवी ते श्यामदत्ताने कोश्क तब्बवने किनारे याग्रह पूर्वक तेणे जमामी. // 4 // पछी घोडा ने तृप्त करीने तथा पोते पण तृप्त थश्ने ते अगल दत्त पागे स्थपर चीने घणो मार्ग नळंगी गयो. // 55 // पड़ी ते दशार्ण देशनी पासे रहेला कोक गामपासे गयो, त्यां ते गामनी सीममां तेणे एकग थयेला जनसमुहने जोयो. // 56|| ते समुहमांथी पंथीना वेषवाळा बे पुरुषो तळावने किनारे घोमाने पाणी पावामां पडेला ते . गलदत्तनी पासे याव्या, // 7 // अने पूजवा लाग्या के हे पंथि तुं क्याथी आवे ? तथा Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri. M.S.