________________ सार्थ | रिमं // तेने तारकितव्योम-ब्रमं तहनमयपि // 41 // सप्रसास्वादनफला / सबायाशुक. 45 कर करौ तव // एवं निःस्पृहवंदीव / तं स्तौतिस्म मुहुर्मुहुः // 4 // अयमुच्चैः कलासद्म / कर्म गायन करवा लागी. // 38 // पुष्पो अंने फलोनी संपत्तिनी दानशाळासरखा ते बगीचाने जो ने कोलाहल करताथका ब्राह्मणोए (कागडानए) तेजनुं पालुं गेमयुं नहि. // 40 // विकस्व. र पुष्पोथी नरेखो तथा घाटा लीलां वृदोवाळो ते बगीचो दिवसे पण ताराजवाळा अाकाशनो ब्रम उपजावतो-हतो. // 41 // मनोहर रसना खादरूपी फलवाळी नत्तम गयावाळी तथा शुकपदिनने (शीघ कविने ) प्रिय एवी ते वामी नाटिकानीपेठे धनश्रेष्टिने खुश करवा लागी. // 43 // हे कलाकर! वृदोने पुष्ट करनारा तारा बन्ने हाथो जय पामो? एवी रीते लालचविनाना बंदीनीपेठे धनश्रेष्टी तेनी वारंवार स्तुति करवा लाग्यो. // 4 // या जंचा प्रकारनी कलावा. लो माणस नीच कार्य करवाने लायक नथी, एम विचारीने धनश्रेष्टिए तेने बगीचामांथी दर Jun Gun Aaradhak Trust * P.P.AC:Gurtratnasuri M.S.